भारत का एक ऐसा द्वीप है, जो की भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित है, इसका कारण वहा रहने वाली जनजाति के खतरनाक लोग है जो नही चाहते की बाहर का कोई भी व्यक्ति उनसे संपर्क करे, बाहर के किसी भी व्यक्ति के लिए उनका व्यवहार बहुत ही आक्रामक है। आपको यह जानकर हैरानी होगी की ये जनजाति 60,000 साल पुरानी है किन्तु इस जनजाति से इंसानों का संपर्क बहुत ही कम बार हो सका है, हम बात कर रहे है नार्थ सेंटिनल आइलैंड (North Sentinel Island) की जो की भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के अंडमान द्वीप समुह का एक द्वीप है । इस द्वीप पर रहने वाली जनजाति को सेंटिनल जनजाति कहते है। नार्थ सेंटिनल आइलैंड भारत का अभिन्न अंग है तथा यह आइलैंड अंडमान - निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से सिर्फ 60 किलोमीटर स्थित है, इतना नजदीक होने के बाद भी इस द्वीप से अभी तक संपक नही जुड़ पाया है।
सेंटिनल आदिवासियों और आधुनिक मनुष्यों का पहला कांटेक्ट
सेंटिनल आदिवासियों का आधुनिक मनुष्यों से पहला कांटेक्ट 1880 में हुआ था, जो रॉयल नेवी के अधिकारी मारिस पोर्टमैन द्वारा किया गया था, वे सेना की एक टुकड़ी ले कर इस द्वीप पर गये थे, द्वीप पर पहुचने के बाद इन्होने बहुत दिनों तक खोज की लेकिन कुछ नही मिल रहा था, शायद यहा रहने वाले आदिवासी इतने सारे लोगो को देख कर द्वीप के अन्दर किसी गुप्त जगह पर चले गये थे, पर कुछ दिन और खोजने के बाद उन्हें एक बुढा आदमी और एक औरत और चार बच्चे मिले, जिनको साथ में लेकर मारिस पोर्ट ब्लेयर ले आये। उन्हें यह देख कर आश्चर्य हुआ की बुढा और औरत की कुछ ही दिनों में मौत हो गयी और उन बच्चो की भी तबियत बिगड़ने लगी थी तब मारिस ने बच्चो को वापिस सेंटिनल द्वीप पर छोड़ दिया। इसके बाद किसी भी अंग्रेज अधिकारी ने इस द्वीप के लोगो से संपर्क करने की कोशिश दोबारा कभी नही की ।
अंडमान के इस आइलैंड पर मारे गये अमेरिकी युवक जॉन एलन के साथ क्या हुआ था.
कुछ वर्ष पहले एक अमेरिकी नागरिक जिनका नाम जॉन एलन था उन्होंने इस खतरनाक द्वीप पर जाने की कोशिश की थी, यह कोशिश अवैध तरीके से की गयी गयी थी क्योकि भारत सरकार द्वारा यह द्वीप प्रतिबंधित है, तथा यह जाने की सख्त मनाही है, जॉन एलन अमेरिका के अल्बमा के निवासी थे, उनकी उम्र 27 साल थी, जॉन एलन इसाई धर्म का प्रचार करने के उद्देश्य से अंडमान आते रहते थे। उन्होंने कुछ मछुआरो की सहायता से नार्थ सेंटिनल आइलैंड पर जाने की कोशिश की पहली कोशिश में जब यह वहा पहुचे तब सेंटिनल आदिवासियों ने उन पर तीर से हमला किया किन्तु उनके सीने पर बाइबिल के चलते उनकी जान बाच गयी और वे जान बचाकर नाव पर वापिस लौट आये किन्तु अगले दिन वे फिर से नार्थ सेंटिनल आइलैंड पहुचे लेकिन वे इस बार वहा से वापिस नही लौट सके।
सुनामी से भी बची रही यह जनजाति
साल 2004 में जब हिन्द महासागर में सुनामी आई थी तब भी यहा रहने वाले आदिवासी सुनामी से बच गये थे, सुनामी के बाद भारत सरकार द्वारा स्तिथि देखने के लिए जब नेवी का एक हेलीकाप्टर इस द्वीप पर भेजा गया तब यह हेलीकाप्टर थोड़ा निचे उतरने लगा तभी आदिवासीयो ने हेलीकाप्टर पर तीर से हमला करना शुरू कर दिया मानो वे यह कहना चाहते हो की हमें तुम्हारी कोई जरुरत नही है, चले जाओ यहाँ से। हेलीकाप्टर के पायलट के बयान के अनुसार वहा रहने वाले लोग सुनामी के बाद भी सुरक्षित थे।
नार्थ सेंटिनल आइलैंड से जुड़े कुछ तथ्य
- नार्थ सेंटिनल आईलेंड पर रहने वाली यह जनजाति लगभग 60000 साल पुरानी है।
- नार्थ सेंटिनल आईलेंड पर रहने वाली जनजाति बहुत ही आक्रामक है ।
- इन आदिवासियों का रंग काला होता है तथा यह बिना कपड़ो के रहते है ।
- यह आहार के लिए पूरी तरह शिकार पर निर्भर है ।
- सेंटिनल जनजाति के लोगो की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ही कमजोर है, इतनी की बाहरी लोगो के संपर्क में आने से बीमार होने पर इनकी मौत हो जाती है, इसीलिए सरकार ने इन्हें बचाने के लिए इस द्वीप को प्रतिबंधित कर दिया ।
- साल 2004 में आई भयंकर सुनामी से भी यह जनजाति बच गयी थी ।
- नार्थ सेंटिनल के लोग बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अनजान है, यदि कोई बाहरी दुनिया से इनके पास जाने की कोशिश करता है तो ये उस पर हमला कर के उसे मार देते है या भगा देते है ।
- इस आइलैंड को आप गूगल मैप्स पर भी आसानी से देख सकते है ।
- यह पोर्ट ब्लेयर से केवल 60 किलोमीटर दूर है ।
- इस आईलेंड के लोग तीर कमान चलाना तथा नाव चलाना जानते है।
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