इंदौर प्राचीन काल से
इंदौर का सम्पूर्ण इतिहास जानने की मेरी हमेशा से ही जिज्ञासा रही है, क्योंकि में भी इंदौर से ही हूँ, नेट पर सर्च करने के बाद भी मुझे पूरी जानकारी कही नही मिली, किन्तु जब में राजवाडा महल में गया तो मुझे वहां समस्त जानकारी मिली जिसे पढ़कर मेरी जिज्ञासा शांत हुई, यह लेख मेने इसी लिए लिखा है की जो मेरी तरह इतिहास में रूचि रखते है उनकी इंदौर के इतिहास को जानने की जो जिज्ञासा है वो शांत हो जाये तो चलिये अब आगे बढ़ते है :-
प्राचीन इंदौर :
- इंदौर क्षेत्र का इतिहास उज्जैन और धार के निकट क्षेत्र से जुड़ा है, इंदौर की सरंचना अवंती के प्राचीन साम्राज्य का हिस्सा है ।
- 6 वी शताब्दी बीसी के दौरान अवन्ती (बोद्ध कालीन) भारत के चार प्रमुख राजतंत्रियो में से एक था, चंड प्रघोध जो बुद्ध के समकालीन थे। वे अवन्ती के शक्तिशाली शासक थे ।
- इसके बाद 4 वी सदी बीसी में अवन्ती मोर्य साम्राज्य का प्रांतीय मुख्यालय था । राजकुमार अशोक उज्जैन में राज्य प्रतिनिधि थे ।
- बाद में क्षेत्र शुंगस को पारित कर दिया गया और उसके बाद पहली शताब्दी के ए.डी. में यह क्षेत्र पश्चिमी क्षत्रप के अंतर्गत आया और फिर सातवाहन राजा गौतम पुत्र सातकरणी के अधीन हुआ ।
- धीरे- धीरे यह क्षेत्र गुप्त वंश के अधीन हुआ, नदी के दक्षिण किनारे पर 2 वी से पहली सदी बीसी के मध्य एक स्तूप पाया गया ।
- पूरातात्विक में प्रमाण बताते है की घरो की दीवारों को पत्थर में बनाया गया था, उस अवधि के ताम्बे के सिक्को के साथ रोजमर्रा की जिंदगी में लोहा और ताम्बे की वस्तुए प्रचलन में थी ।
- आभूषण उत्तम मोतियों से जडित मट्टी, पत्थर, एवम गोले की चूडियो के थे यह बस्ती कान्ह नदी के उत्तरीय किनारे पर थी।
- ऐसा माना जाता है की बाद में इंदौर कलचुरी शासन के अधीन था।
- 8 शताब्दी के शुरुवाती दिनों में, गुर्जर प्रतिहार वंश ने इस क्षेत्र को संभाला और अवन्ती के प्रतिहार राजा नागभट्ट ने उन अरब आक्रमणों का सामना किया, जो तब तक शुरू हुए थे ।
- नागभट्ट राष्ट्रकूट द्वारा सफल हुए थे, राष्ट्रकूट, प्रतिहार और पाल के बीच त्रिपक्षीय संघर्ष शुरू हुआ था।
- यह स्पष्ट नहीं है की इंदौर कितना बड़ा या छोटा था फिर भी राष्ट्रकूट राजा इंद्र इंदौर में रुके थे और इन्द्रेश्वर नामक एक मंदिर का निर्माण किया, जिसके बाद बस्ती का नाम इंद्रपुर हुआ।
- 9 सदी की शुरुआत में धार को अपनी राजधानी बनाने के साथ परमार साम्राज्य की स्थापना हुयी और उसके बाद से 13 वी शताब्दी के मध्य तक इंदौर परमार राज्य का हिस्सा बना ।
- पुरातात्विक प्रमाण है, जो इंगित करते है की परमारों के दौरान इंदौर एक निवास स्थान था और इंदौर के नजदीक अन्य जगहों पर परमार काल की बहुत सांस्कृतिक धरोहर थी।
- 1232 ईस्वी में मुस्लिम आक्रमण इस क्षेत्र में शुरू हुआ और 1305 में, इंदौर दिल्ली के खिलजी सुल्तानों के अधीन आ गया।
- इसके बाद 1320 में तुगलक वंश के अधीन रहा ।
- 1401 में दिल्ली के सुल्तानों के राज्यपाल ने मालवा के सुल्तान बनने के लिए स्वतंत्रता की घोषणा की, इस प्रकार मांडू में अपनी राजधानी के साथ मालवा में सल्तनत की शुरुआत हुई ।
- वर्ष 1561 - 62 में अकबर ने खुद मालवा पर विजय की योजना बनाई थी, मालवा को अबुल फजल ने भारत के सबसे सम्रद्ध भागो में से एक के रूप में वर्णित किया है।
- इस प्रकार मालवा और इसके साथ इंदौर मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बन गया, अकबर के प्रशासनिक संगठन में मालवा के सूबा में 12 सरकारे थी, प्रत्येक सरकार ने इसे महल के अधीन किया था, जो वर्तमान दिन के जिलो की तरह था, इंदौर के पास 2 सरकारे मांडू और उज्जैन की थी।
- उज्जैन की सरकार के पास 10 महल थे, जबकि मांडू के 16 महल थे।
- इन्द्रपुर गाँव (इंदौर) उज्जैन सरकार के देपालपुर महल के अधीन था।
- इंदौर , इस प्रकार मुग़ल साम्राज्य के हिस्से के रूप में सूबा के अधीन था और उज्जैन से प्रशासित किया गया था।
- यह पहली बार जमींदार राव नन्दलाल चौधरी द्वारा विकसित किया गया था और यह माना गया था कि इसका नाम भगवान् इन्द्रेश्वर मंदिर से मिलता है।
- इंदौर का महत्व बढ़ रहा था क्योकि यह उत्तर - दक्षिण मार्ग पर अपनी रणनीतिक स्थान के कारन एक सैंन्य शिविर के रूप में काम करता था।
- मालवा सूबा, बेरार, अहमदनगर, खानदेस और दक्कन के खिलाफ अपने अभियानो में मुगलों का आधार बन गया था ।
होलकरो का आगमन
- इंदौर लगभग 200 वर्षो के लिए मुगलों के अधीन था ।
- जैसे ही मुग़ल शक्ति कमजोर हुई, मालवा ने मराठो को आकर्षित किया ।
- 1703 में मल्हार राव होलकर, पेशवा के जनरल को चौथ और सरदेशमुखी को लेने के लिए मालवा में तैनात किया गया था। (चौथ और सरदेशमुखी - मराठा कराधान प्रणाली में दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण कर चौथ और सरदेशमुखी थे )
- 1739 तक मल्हार राव होलकर इंदौर के शासक बने ।
मल्हार राव होलकर प्रथम
- एक विनम्र स्थिति से बढ़ते हुए, होलकर वंश के संस्थापक बने मल्हार राव को भारत के बेहतरीन जनरलों में शामिल होने के लिए मूल्यांकित किया गया।
- मल्हार राव जेजुरी (अब पुणे जिले में) के निकट होल गाँव में वर्ष 1693 में जन्मे।
- कम आयु में पिता के निधन के बाद उनकी माँ अपने भाई के गाँव चली गयी।
- एक युवा लड़के के रूप में मल्हार राव स्थानीय भूमि स्वामी के घुड़सवार समूह के साथ कुछ समय के लिए एक सैनिक के रूप में रहे।
- 26 वर्ष की आयु में 1719 में उन्होंने पेशवा बालाजी विश्वनाथ के सैन्य अभियानों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।
- एक सैनिक के रूप में मल्हार राव होलकर की पहली बड़ी उपलब्धि बालाजी विश्वनाथ की सेना के अंतर्गत दिल्ली में उनके अभियान और विजय में थी, मुग़ल शासक फारुखशियेर को सैय्यद भाइयो द्वारा पकड़ा गया था।
- 1720 में उन्होंने फिर से निजाम के खिलाफ बालापुर की लडाई में एक प्रमुख भूमिका निभाई।
- वह जल्द ही पेशवा बाजीराव के विश्वनीय कमांडर के रूप में उभरे और उनके सैन्य कौशल की वजह से रैंको में आगे बढ़ना शुरू हो गया और उन्होंने कई अभियानो में भाग लिया ।
- 1732 तक वह पश्चिमी मालवा का एक बड़ा हिस्सा कई हजारो की एक घुड़सवार सेना का नेतृत्व कर रहे थे।
- मल्हार राव को इस कार्य से बल मिला ।
- उन्हें 1748 की रोहिल्ला अभियान के लिए एक शाही सरदेशमुखी प्रदान किया गया था मल्हार राव जल्द ही पश्चिमी मालवा के निर्विवाद नेता बन गये और एक कद प्राप्त किया जिसने उन्हें उत्तर भारत में विशेष रूप में शासको के बीच विवादों को सुलझाने में सक्षम बनाया।
- 1754 में कुम्हेर किले ( अब भरतपुर जिले में, राजस्थान ) की घेराबंदी के दौरान लड़ाई में उनके एकमात्र पुत्र खांडेराव की मृत्यु हो गयी।
- 1757 में वे पेशवा के सूबेदार बने ।
- उन्होंने महाराजा के ख़िताब को अपनाने के बजाय सूबेदार मल्हार राव होलकर के नाम को पसंद किया।
- 1747 में उन्होंने तत्कालीन मौजुदा स्थल पर राजवाडा का निर्माण शुरू किया, जिसका नाम हाकिमवाडा था। हाकिमवाडा अरबी में हाकिम शब्द का अर्थ है एक शासक, राज्यपाल या न्यायाधीश। जिस स्थान पर उन्होंने इंदौर में अपना पहला शिविर स्थापित किया था उस मल्हारगंज के नाम से जाना जाता है।
- कानपुर के पास एक लड़ाई में चोट लगने के बाद आलमपुर (लाहर तहसील, भिंड जिला एम. पी.) 1766 में उनका निधन हो गया।
- वह तब 73 वर्ष के थे, यह उनकी तंदरुस्ती और एक सैन्य शक्ति का नेतृत्व करने की क्षमता के बारे में बताता है।
- देवी अहिल्याबाई ने उनकी याद में आलमपुर में एक सुन्दर क्षत्री का निर्माण किया।
- वह लड़े और करीब 50 से अधिक लड़ाईया जीती। उनमे से कुछ निम्न है :-
- बाजीराव पेशवा के ने नेतृत्व में फाल्केड की लड़ाई 1728 मे जिसमे निजाम पराजित हो गया था। मल्हार राव ने मराठो को सामरिक लाभ देने के लिए आपूर्ति और संचार काट दिया। यह युद्ध चपल युद्ध के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। यहाँ तक की एफडी मार्शल मांटगोमेरी ने अपनी पुस्तक " युद्ध का इतिहास" में इसका उल्लेख किया है।
- 1739 तक भोपाल में निजाम को हराया।
- चिमाजी ने अप्पा के नेतृत्व में पुर्तगाली से बेससीन (अब वसई) का किला, दोब क्षेत्र में अफगानों को हराया और बाद में नजीब ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस समय दिल्ली में नजीब -उद-दोलाह रोहिल्ला नेता के नियंत्रण में था। इससे मराठो ने दिल्ली के वास्तविक शासको को बनाया और आलमगिर द्वितीय किसी वास्तविक ताकत के बिना सिर्फ एक प्रमुख बने रहे।
- मल्हार राव ने आधार क्षेत्र के रूप में दिल्ली का प्रयोग किया और 1758 में सरहिंद का कब्ज़ा किया और जल्द ही लाहौर भी कब्जे में आ गया।
- हालाँकि पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठो को एक गंभीर झटका थी, लेकिन युद्ध के बाद यह मल्हार राव होलकर की वजह से था कि मराठा साम्राज्य को उत्तर भारत में सरंक्षित किया जा सकता था।
- यह मल्हार राव की प्रतिबद्धता और सेन्य नेतृत्व था जो मराठो की मदद करता था। जिससे उन्होंने लाहौर तक विजय प्राप्त की जो अब पकिस्तान में है।
- कोई आश्चर्य नहीं कि एक राजस्थानी कवि ने उनकी बहादुरी की प्रशंसा करते हुए लिखा है :
सिन्हा सिर नीचा किया गाडर करे गलार ! अधपतिया सिर ओधीणि, तो सिर पर पाघ मल्हार !! ""
माले राव होल्कर
- 1754 में कुम्हेर किले को घेरने के दौरान मल्हार राव के एकमात्र पुत्र खांडेराव को मार डाला गया था, खांडेराव के बेटे मालेराव सिंहासन के उत्तराधिकारी बने।
- मालेराव लम्बे समय तक जीवित नही रहे तथा उनकी म्रत्यु कार्यभार संभालने के कुछ ही महीनो में हो गयी।
- स्वामी परमहंस योगानंद ने अहिल्याबाई को आधुनिक भारत की सबसे महानतम महिला बताया है।
- यह बीड जिला महाराष्ट्र में गाँव चौढ़ी में 1725 में पैदा हुई, उनके पिता मानकोजी शिंदे गाँव के पाटिल थे जिन्होने उन्हें पढने और लिखने की शिक्षा दी।
- उनकी माता एक साक्षर एव धार्मिक स्त्री थी, एक बार मल्हार राव होल्कर पुणे जाने के मध्य चौढ़ी में रुके थे और उस युवा लड़की से इतना प्रभावित हुए की उन्होने उसे अपनी बहु बनाने के लिए चुना।
- 1754 में खांडेराव (देवी अहिल्याबाई के पति) की म्रत्यु के बाद मल्हारराव होलकर ने अहिल्याबाई को उनके उत्तराधिकारी के रूप में प्रशिक्षण देना शुरू किया।
- उनकी अनुपस्थिति में अहिल्याबाई ने सफलतापूर्वक, प्रशासन और युद्ध दोनों को प्रबंधित किया। एक उदारहण देने के लिए एक महत्वपूर्ण परिस्तिथि में मल्हारराव ने एक सन्देश भेजा " चम्बल को पार करके आप ग्वालियर के लिए प्रस्थान करे, आप वहा 4 या 5 दिन रुक सकती है । अपनी तोप व ज्यादा से ज्यादा गोला -बारूद की व्यवस्थता कर ले तथा आगे प्रस्थान करते वक्त सड़क की सुरक्षा के लिए सैन्य चौकी स्थापित करे"।
- उन्हें 1766 में मल्हार राव एव पुत्र मालेराव की म्रत्यु के बाद राज्य की जिम्मेदारी सम्भालनी पड़ी।
- दिसम्बर 1767 में राज्यभार संभालने के बाद, उन्होंने राज्य को भगवान् शंकर को समर्पित कर यह घोषित किया कि वह राज्यों के मामलो में भगवान् शंकर की और से जनता के लिए स्वयं केवल एक सरंक्षक होगी। उनके हस्ताक्षर "श्री शंकर" सभी शाही घोषणाओ में दिखाई दिए ।
- उन्होंने होल्कर राज्य की राजधानी महेश्वर को बनाया।
- 18 वी सदी की दूसरी छ: माही में भारत में राजनितिक अस्थिरता का समय था। यह एक सामाजिक और राजनैतिक उथल पुथल की अवधि थी।
- यह श्रेय उन्ही को है की उनके 30 वर्षो के शासन काल के दौरान मालवा स्थिर और शांतिपूर्ण रहा और होलकर राज्य का वर्चस्व कम नहीं रहा और कभी भी हमला नही हुआ ।
- यह उनके नेतृत्व और प्रशासनिक कौशल के बारे में बताता है।
- उन्होंने वाराणसी के प्रसिद्द काशीनाथ मंदिर सहित पुरे देश में आश्रम, मंदिरों धर्मशालाओ के निर्माण का एक विस्तृत कार्य किया।
- यह सब खासगी के माध्यम से किया गया था, खासगी का अपना खजाना है। सामाजिक एव आपराधिक मामलो में खासगी स्वतंत्र न्याय क्षेत्र था।
- खासगी सम्पति इंदौर राज्य में एक जागीर की प्रकृति में है, और उसके पास किसी जागीरदार सरदार या मकान मालिक की तरह अंत निर्हित अधिकार है, जिसके साथ छेड़छाड़ नही की जा सकती थी।
- सत्तारूढ़ रानी सर्वोच्च राजस्व और न्यायिक शक्तियो का प्रयोग करती है जो केवल गंभीर अपराधो के सम्बन्ध में महाराज को अपील करता है। रानी व्यापार के लेन देन के लिए दरबार रखती है। एक अलग सिंहासन, सील, प्रतिष्ठान और अलग - अलग नारों को उनके शौक और उत्सव के अवसरों पर प्रस्तुत किया जाता है और उनके परिग्रहण के समय रानी सिंहासन पर बैठती है और उसी तरह सलाम प्राप्त करती है जैसे राजकुमार करता है।
- उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान महेश्वर में कपडा उद्योग की स्थापना की। महेश्वरी साड़ीया पुरे भारत में प्रसिद्द है एक तरह से यह कहा जा सकता है कि वह भारत में छोटे पैमाने पर उद्योगों का सबसे पुरानी प्रोत्साहक थी।
- व्यापार को उनके राज्य में प्रोत्साहित किया गया था इससे कई व्यापारियों और किसानो ने विकास किया।
- यात्रा की सुविधा और त्वरित संचार प्रदान करने के साधन के रूप में सड़के बनाई गई, पेड़ लगाए गये, कुए खोदे और यात्रियों के लिए आराम घर स्थापित किये गये।
- महेश्वर आपने समय के दौरान साहित्य और कला का केंद्र बन गया।
- उन्होंने कई कारीगरों, मूर्तिकारो, कलाकारो को भी प्रोत्साहन दिया जो भवनों और किले में काम करने आये और महेश्वर को अपना घर बनाया।
- वह गरीब और जरुरतमंदों तक पहुची, उन्हें शरण दी और विशेष रूप से उन्हें सम्मान दिया।
- उन्होंने खासगी के माध्यम से कई कल्याणकारी गतिविधिया चलायी। खासगी का मतलब है की केवल कल्याण और धर्माथ सक्रिताओ के लिए बनाया गया एक कौश।
- आहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में इस ट्रस्ट की स्थापना की थी। ट्रस्ट के पीछे उद्देश्य होलकर वंश में महिलाओ की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना था, ताकि धार्मिक स्थानों के रखरखाव के लिए उनको पुरुष समकक्षो पर निर्भर नही होना पड़े। उन्होंने पुरे देश में दान के माध्यम से खर्च करके एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण का प्रदर्शन किया जो केवल प्रांतीय या क्षेत्रिय नही था।
- पुरे देश को एकजुट करने की उनकी नीति के एक हिस्से के रूप में उन्होंने गंगाजल को हर साल नियमित रूप से देशभर में फैले 34 धार्मिक स्थलों तक भेजे जाने की व्यवस्था की।
- गौतमा बाई के निधन के बाद आहिल्याबाई को निजी कोष विरासत में मिला।
- मल्हार राव के समय दौरान वह सस्यम तीर्थ यात्रा पर विभिन्न स्थानों पर गयी थी और इस प्रकार उन्हें पूरी जानकारी थी कि तीर्थ यात्रा करने के लिए समस्याए आती है । हिंदुत्व के लिए जितना भी किया उतना मुस्लिम फकीर और संतो को अनुदान किया, उनका दृष्टिकोण धर्मनिरपेक्ष था।
- उन्होंने पुरे भारत में नदियों पर घाटो का निर्माण किया, नए मंदिरों का निर्माण और क्षतिग्रस्त मंदिरों का पुन: निर्माण, कुए खोदने और धन जमा कर, गरीबो और तीर्थ यात्रियों के लिए मुफ्त सार्वजनिक रसोईघर भी शुरू किये।
- उन्होंने न केवल मंदिरों का निर्माण किया बल्की शास्त्रों पर चिंतन और उपदेश के लिए ज्ञानी पंडितो की देखभाल के लिए भी भुगतान की व्यवस्था की।
- उन्होंने अपने सभी धर्माथ काम बहुत व्यवस्थित तरीके से किये। इसी कारण से वह देश भर में लगभग हर महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान पर सुविधाये बनाने में सक्षम रही। बद्रीनाथ और केदारनाथ से रामेश्वरम तक जगन्नाथपूरी से द्वारका और सोमनाथ तक अहिल्या माँ साहब की चाप दिखती है, इन के रखरखाव के लिए एक अलग कोष विशेष रूप से आवंटित किया गया था यही कारन है की आज भी उनके सभी योगदान जीवित है ।
- उनके द्वारा बनाये गये ढांचे न केवल तकनिकी रूप से सही है बल्कि सौंदर्यवादी रूप से उत्तम उदारहण भी है।
- अहिल्या बाई ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का पुन: निर्माण किया, जो कि 1669 इसवी में औरंगजेब सहित कई मुस्लिम आक्रमणकारियो की सेनाओ द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था कई तरह से और कई क्षेत्रो में वह अच्छी तरह से अपने समय से आगे थी ।
- आहिल्या बाई तब और अब भी एक संत के रूप में प्रतिष्ठित है ।
- मूर्तिकारो और कारीगरों के लिए उन्होंने कहा कि इस होल्कारी छेनी को लगातार काम करना चाहिए, निर्माण कार्य बंद नही होना चहिये ।
- अहिल्या माँ साहब 13 अगस्त 1795 को स्वर्ग सिधार गयी।
देवी अहिल्या बाई द्वारा बनायीं गयी परियोजनाए :
- चौढ़ी - चौढेश्वरी देवी मंदिर, सिंस्वर महादेव मंदिर- अहिल्याश्वर मंदिर, धर्मशाला, घाट
- चित्रकूट - श्री रामचंद्र की प्राण प्रतिष्ठा
- सिखाल्डा - अन्नक्षेत्र
- द्वारका (गुजरात)- मोहताजखाना, पूजा घर और पूजारियो को कुछ गाँव दिए
- एलोरा - लाल पत्थर का घृष्णेश्वर मंदिर
- गंगोत्री - विश्वनाथ, केदारनाथ, अन्नपूर्णा, भैरव मंदिर और कई धर्मशाला
- गया (बिहार)- विष्णुपाद मंदिर
- गोकर्ण - रेवालेश्वर महादेव मंदिर, होलर वाडा, गार्डन, और गरीबखाना
- ग्रुनेश्वर (वेरुल) - शिवालय तीर्थ -सिद्धनाथ मंदिर, घाट और धर्मशाला
- हरिद्वार (उत्तराखंड)- कुशवर्थ घाट और विशाल धर्मशाला
- ऋषिकेश - कई मंदिर, श्रीनाथ जी और घाट
- गोवर्धन राम मंदिर
- इंदौर - कई मंदिर और घाट
- जगन्नाथ पूरी (उड़ीसा) - श्री रामचंद्र मंदिर, धर्मशाला, और उद्यान
- जलगाँव - राम मंदिर
- जामघट- भुमिद्वार
- जामगांव - रामदास स्वामी मठ के लिए दान किया गया
- जेजुरी- मल्हार गुप्तेश्वर, विट्ठल, मार्तंड मंदिर, जानई महादेव मंदिर और मल्हार झील
- मनसादेवी - सात मंदिर
- मंडलेश्वर - शिव मंदिर घाट
- दत्त मंदिर (मानगाँव)- दत्ता मंदिर, सावंतवाडी के पास कोंकण महाराष्ट्र, भारत
- मिरी (अहमदनगर)- 1780 में भैरव मंदिर
- नेमावर (एम. पी ) - मंदिर
- नंदुरबार (1) - मंदिर और कुंए
- नीलकंठ महादेव - शिवालय और गोमुख
- नैमिषारण्य ( युपी) - महादेव मैदी, निमसार धर्मशाला, गौ-घाट चक्रतीर्थ कुंड
- नीमगाँव (नासिक) - कुंआ
- ओम्कारेश्वर (एमपी) - ममलेश्वर महादेव, अम्लेश्वर, त्रंबकेश्वर मंदिर (जीर्णोद्धार), गौरी सोमनाथ मंदिर, धर्मशालाए, कुंए
- ओजर (अहमदनगर) - 2 कुए और कुंड
- पंचवटी (नासिक) - श्री राम मंदिर , गौरा महादेव मंदिर धर्मशाला, विश्वेश्वर मंदिर, रामघाट, धर्मशाला
- परली वैजनाथ - परली वैजनाथ श्री वैजनाथ मंदिर
- पंढरपुर (महाराष्ट्र) - श्री राम मंदिर, धर्मशाला और मंदिर के लिए रजत बर्तन प्रदान किया। कुआ जो की बाजीराव कुवे के नाम से जाना जाता है ।
- पिम्पलस (नासिक)- कुआ
- भानपुरा - नौ मंदिर और धर्मशाला
- भरतपुर - मंदिर, धर्मशाला, कुंड
- कर्मनाशिनी नदी - पुल
- काशी (बनारस) - काशी विश्वनाथ मंदिर, श्री तारकेश्वर, गौतमेश्वर, कई महादेव मंदिर, घाट, मनीषकरणी घाट, दशास्वामेघ घाट, जनाना घाट, अहिल्या घाट, उत्तरकाशी धर्मशाला, कपिल धारा धर्मशाला, शीतला घाट
- केदारनाथ - धर्मशाला और कुंड
- कोल्हापुर - मंदिर पूजा के लिए सुविधाए
- कुम्हेर - खांडेराव जी की स्मृति में कुए एव स्मारक का निर्माण
- कुरुक्षेत्र (हरियाणा) - शिव शांतनु महादेव मंदिर, पंचकुद घाट, लक्ष्मिकुंद घाट
- महेश्वर - सेकड़ो मंदिर, घाट, धर्मशाला और घर
- मंडलेश्वर महादेव (हिमाचल प्रदेश) - घाट
अहिल्या बाई के बाद इंदौर पर किन राजाओ ने राज किया ब्रिटिश इंदौर कब आये यह हम अगले भाग में जानेगे
नोट : यह समस्त जानकारी राजवाडा महल इंदौर में लगे पोस्टर के आधार पर ली गयी है, लेख पढने वालो से मेरा अनुरोध की अगर वे इंदौर में रहते हो तो राजवाडा महल और संग्रहालय देखने अवश्य जाए और अगर आप इन्दोर से बाहर के है तो जब भी आप इंदौर आये तो राजवाडा महल और संग्रहालय देखने अवश्य जाए आपको अद्भुत आनंद की प्राप्ति होगी ।
। लेख पढने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
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